EN اردو
काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू | शाही शायरी
kash maqbul ho dua-e-adu

ग़ज़ल

काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू

मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा

;

काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू
क्या करूँ वो भी मुस्तजाब नहीं

अब तो उस चश्म-ए-तर का चर्चा है
ज़िक्र-ए-दरिया नहीं सहाब नहीं

जम्अ' तूफ़ान-ओ-चश्म-ए-तर मसरफ़
अब मसारिफ़ का कुछ हिसाब नहीं

धो दिया सब को दीदा-ए-तर ने
वो नहीं दर्स वो किताब नहीं

इश्क़-बाज़ी का मुँह चिड़ाना है
और वो मौसम नहीं शबाब नहीं

तेरी आँखों के दौर में क्या क्या
सेहर रुस्वा नहीं ख़राब नहीं

मुख़्तसर हाल-ए-चश्म-ओ-दिल ये है
उस को आराम उस को ख़्वाब नहीं

जो सरापा-ए-यार 'आज़ुर्दा'
तेरे दीवाँ का इंतिख़ाब नहीं