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कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए | शाही शायरी
karzar-e-zindagi mein aise lamhe aa gae

ग़ज़ल

कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए

हयात रिज़वी अमरोहवी

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कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए
अज़्म-ए-मोहकम रखने वाले वक़्त से घबरा गए

दूसरों के वास्ते जीते रहे मरते रहे
ख़ूब-सीरत लोग थे राज़-ए-मोहब्बत पा गए

बाग़ पर बिजली गिरे या नज़्र-ए-गुलचीं हो रहे
आह अब सोचों के धारे इस नहज पर आ गए

इस झुलसती धूप ने आख़िर कहाँ पहुँचा दिया
छाँव की ख़ातिर पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ आ गए

वाए महरूमी कि बस हम आसमाँ तकते रहे
यूँ तो बादल घिर के आए हसरतें बरसा गए

दिल की शादाबी की ख़ातिर दिल की तस्कीं के लिए
'रिज़वी'-ए-मुज़्तर कभी मक्का कभी मथुरा गए