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कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों | शाही शायरी
karzar-e-ishq-o-sar-masti mein nusrat-yab hon

ग़ज़ल

कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों

अफ़ज़ल परवेज़

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कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों
वो जुनूनी दार तक जाने को जो बेताब हूँ

कोहसारों पर सवा-नेज़े पे सूरज आए तो
चोटियों की बर्फ़ पिघले वादियाँ सैराब हों

दूसरे साहिल पे कोई सोहनी हो मुंतज़िर
हम महींवालों के आगे बहर भी पायाब हूँ

आफ़ियत पाते हैं ख़्वाबों के हसीं बहरों में लोग
जब हर इक मौज-ए-हक़ाएक़ में निहाँ गिर्दाब हों