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कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा | शाही शायरी
karwan ishq ki manzil ke qarin aa pahuncha

ग़ज़ल

कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा

अबु मोहम्मद वासिल

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कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा
ख़ुद मिरे दिल में मिरे दिल का मकीं आ पहूँचा

मेरे हर सज्दे से लब्बैक की आवाज़ आई
आस्ताँ भी तो मिरे नज़्द-ए-जबीं आ पहूँचा

तेरे दीवाने को अपना है न मंज़िल का है होश
अपने मरकज़ से चला और वहीं आ पहूँचा