EN اردو
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है | शाही शायरी
kar-gah-e-duniya ki nesti bhi hasti hai

ग़ज़ल

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है

यगाना चंगेज़ी

;

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
इक तरफ़ उजड़ती है एक सम्त बसती है

बे-दिलों की हस्ती क्या जीते हैं न मरते हैं
ख़्वाब है न बेदारी होश है न मस्ती है

क्या बताऊँ क्या हूँ मैं क़ुदरत-ए-ख़ुदा हूँ मैं
मेरी ख़ुद-परस्ती भी ऐन हक़-परस्ती है

कीमिया-ए-दिल क्या है ख़ाक है मगर कैसी
लीजिए तो महँगी है बेचिए तो सस्ती है

ख़िज़्र-ए-मंज़िल अपना हूँ अपनी राह चलता हूँ
मेरे हाल पर दुनिया क्या समझ के हँसती है

क्या कहूँ सफ़र अपना ख़त्म क्यूँ नहीं होता
फ़िक्र की बुलंदी या हौसले की पस्ती है

हुस्न-ए-बे-तमाशा की धूम क्या मुअम्मा है
कान भी हैं ना-महरम आँख भी तरसती है

चितवनों से मिलता है कुछ सुराग़ बातिन का
चाल से तो काफ़िर पर सादगी बरसती है

तर्क-ए-लज़्ज़त-ए-दुनिया कीजिए तो किस दिल से
ज़ौक़-ए-पारसाई क्या फ़ैज़-ए-तंग-दस्ती है

दीदनी है 'यास' अपने रंज ओ ग़म की तुग़्यानी
झूम झूम कर क्या क्या ये घटा बरसती है