काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है
साँप को मार के गंजीना-ए-ज़र लेता है
ना-गवारा को जो करता है गवारा इंसाँ
ज़हर पी कर मज़ा-ए-शीर-ओ-शकर लेता है
हाले में माह का होता है चकोरों को यक़ीं
कभी अंगड़ाई जो वो रश्क-ए-क़मर लेता है
वो ज़ुबू-बख़्स शजर हूँ मैं कि दहक़ाँ मेरा
पीछे बोता है मुझे पहले तबर लेता है
मंज़िल-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना जा-ए-अदब है ग़ाफ़िल
बादशह तख़्त से याँ अपने उतर लेता है
गंज-ए-पिन्हाँ हैं तसर्रुफ़ में बनी-आदम के
कान से लाल ये दरिया से गुहर लेता है
नज़र आ जाता है ऐ गुल जिसे रुख़्सार तिरा
फूलों से दामन-ए-नज़्ज़ारा वो भर लेता है
अक़्ल कर देती है इंसाँ की जहालत ज़ाइल
मौत से जान छुपाने को सिपर लेता है
याद रखता है अदम में कोई साग़र-कश उसे
हिचकियाँ शीशा-ए-मय शाम-ओ-सहर लेता है
ग़ैरत-ए-नाला-ओ-फ़रियाद न खो ऐ 'आतिश'
आश्ना कोई नहीं कौन ख़बर लेता है
ग़ज़ल
काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है
हैदर अली आतिश