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जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा | शाही शायरी
juz guman aur tha hi kya mera

ग़ज़ल

जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा

जौन एलिया

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जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा
फ़क़त इक मेरा नाम था मेरा

निकहत-ए-पैरहन से उस गुल की
सिलसिला बे-सबा रहा मेरा

मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी
मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेरा

थूक दे ख़ून जान ले वो अगर
आलम-ए-तर्क-ए-मुद्दआ मेरा

जब तुझे मेरी चाह थी जानाँ
बस वही वक़्त था कड़ा मेरा

कोई मुझ तक पहुँच नहीं पाता
इतना आसान है पता मेरा

आ चुका पेश वो मुरव्वत से
अब चलूँ काम हो चुका मेरा

आज मैं ख़ुद से हो गया मायूस
आज इक यार मर गया मेरा