जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा
फ़क़त इक मेरा नाम था मेरा
निकहत-ए-पैरहन से उस गुल की
सिलसिला बे-सबा रहा मेरा
मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी
मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेरा
थूक दे ख़ून जान ले वो अगर
आलम-ए-तर्क-ए-मुद्दआ मेरा
जब तुझे मेरी चाह थी जानाँ
बस वही वक़्त था कड़ा मेरा
कोई मुझ तक पहुँच नहीं पाता
इतना आसान है पता मेरा
आ चुका पेश वो मुरव्वत से
अब चलूँ काम हो चुका मेरा
आज मैं ख़ुद से हो गया मायूस
आज इक यार मर गया मेरा
ग़ज़ल
जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा
जौन एलिया