जूँ चमन के देख बुलबुल ख़ुश हुआ
बोलते हर फूल पर मज़मूँ-नवा
यूँ हवस ले दिल पे वीराँ बाग़ के
बीस बाड़ी पर करे कागा कवा
ऊ हे क़ाने फूल के यक बास पर
यू न समझ्या अंग भर लाया चुवा
चाल ईकस की न यक कूँ आएगी
इस सुख़न पर हँसते हँस बोल्या कवा
हाँ अरे तक़लीद सूँ हो दूर ब-यक
नीं मुसलमानी में तक़लीदी रिदा
आह उस भूके पे सौ अफ़्सोस है
नान काची है तलग फूटे तवा
मिल के उछ हर हाल में 'बहरी' अरे
नर्म सूँ जूँ मोम सख़्ती सूँ लह्वा
ग़ज़ल
जूँ चमन के देख बुलबुल ख़ुश हुआ
क़ाज़ी महमूद बेहरी