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जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की | शाही शायरी
junun tohmat-kash-e-taskin na ho gar shadmani ki

ग़ज़ल

जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की

मिर्ज़ा ग़ालिब

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जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की
नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की

कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी
हुई ज़ंजीर मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की

पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है
शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की