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जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी | शाही शायरी
jo zehn o dil mein ikaTTha tha aas ka pani

ग़ज़ल

जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी

ज़हीर अहमद ज़हीर

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जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी
उसे भी ले गया साथ अपने यास का पानी

मैं ले के आया था हम-राह जिन को दरिया तक
वो लोग पी गए मेरी भी प्यास का पानी

कब अपने शहर में सैलाब आने वाला था
हमें डुबो के गया आस-पास का पानी

हज़ारों ऐब छुपाने को लग के दुनिया में
बदन पे रखते हैं ज़र्रीं लिबास का पानी

अजीब वक़्त है ज़ाहिद को भी 'ज़हीर' अब तो
शराब लगता है मेरे गिलास का पानी