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जो ज़ौक़ है कि हो दरयाफ़्त आबरू-ए-शराब | शाही शायरी
jo zauq hai ki ho daryaft aabru-e-sharab

ग़ज़ल

जो ज़ौक़ है कि हो दरयाफ़्त आबरू-ए-शराब

मुनीर शिकोहाबादी

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जो ज़ौक़ है कि हो दरयाफ़्त आबरू-ए-शराब
तो चश्म-ए-जाम से ऐ शैख़ देख सू-ए-शराब

कभी तो दे गुल-ए-दस्तार-ए-शैख़ बू-ए-शराब
क़बा की बेल में यारब लगे कदू-ए-शराब

वो मस्त हैं जो हैं मजरूह-ए-तेग़-ए-मौज-ए-मय
जिगर के चाक पे ऐ गुल बने सुबू-ए-शराब

जो आशिक़-ए-लब-ए-बे-गून-ए-यार हो फ़रहाद
तो बे-सुतून से भी जाए शीर-ए-जू-ए-शराब

वो मस्त हैं कि जो तीजा पस-ए-फ़ना होगा
हमारे फूल बनेंगे गुल-ए-कदू-ए-शराब

हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा है
हज़ारों सर्व लगे हैं किनारे जू-ए-शराब

लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारें
दहान-ए-ज़ख़्म-ए-बदन से भी आई बू-ए-शराब

डुबो दिया मुझे तूफ़ान-ए-मय ने ऐ साक़ी
अमीक़-तर क़द-ए-आदम से निकले जू-ए-शराब

नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़
वज़ू के वास्ते लेता है आबरू-ए-शराब

वो रश्क-ए-हूर मय-ए-मुश्कबू का ख़्वाहाँ है
गुल-ए-बहिश्त है मुश्ताक़-ए-रंग-ओ-बू-ए-शराब

सदा-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना से हो गया साबित
कि पेट भर के करें मस्त गुफ़्तुगू-ए-शराब

ब-रंग-ए-शीशा-ए-मय अब की फ़स्ल-ए-बारिश में
करेंगे बैठ के कश्ती में सैर-ए-जू-ए-शराब

खुला ये शीशों के झुकने से हाल ऐ साक़ी
कि सर-कशी नहीं लाज़िम है रूब-रू-ए-शराब

असीर-ए-दाम-ए-अलाएक हों किस तरह मय-ख़्वार
कि रस्सियों में नहीं बाँधते सुबू-ए-शराब

न हो जो किश्त-ए-अमल अपनी सब्ज़ ऐ साक़ी
रियाज़-ए-ख़ुल्द से हम काट लाएँ जू-ए-शराब

इलाज-ए-ज़ोफ़-ए-बसर नूर-ए-मय है मस्तों को
हमारी आँखों की चश्मा बनेगी जू-ए-शराब

पता लगा के गया सू-ए-गुलशन-ए-जन्नत
कहाँ कहाँ नहीं की मैं ने जुस्तुजू-ए-शराब

किसी ने साग़र-ए-मय से गुलों को दी तश्बीह
नसीम-ए-बाग़ से आई जो आज बू-ए-शराब

मिलेंगे साग़र-ओ-मीना जो ख़ाली उसे साक़ी
करेंगे दीदा-ओ-दिल अपनी जुस्तुजू-ए-शराब

किया जो मय-कशों ने अज़्म-ए-सैर-ए-आलम-ए-आब
तो बदले तोंबों के हाथ आ गई कदू-ए-शराब

ख़रीद-ए-जिंस-ए-शफ़ाअत में होगी कैफ़ियत
हमारी गाँठ में है नक़्द-ए-आबरू-ए-शराब

बहक के जाऊँ जो मस्ती में जानिब-ए-कौसर
तो मुझ को दस्त-ए-सुबू खींच लाए सू-ए-शराब

ये किस के आने से मय-ख़ाना में हुइ शादी
दुल्हन के इत्र से मिलती है आज बू-ए-शराब

बदन जो टूट रहा है ज़ुरूफ़-ए-मय के साथ
बना है क्या गुल-ए-आदम से हर सुबू-ए-शराब

वो रश्क-ए-मय करे बाला-ए-बाम मय-ख़्वारी
इलाही आज ख़त-ए-कहकहशाँ हो जू-ए-शराब

ज़ुरूफ़-ए-बादा-ए-गुल-गूँ हो मेरे काँधों पर
फ़रिश्तों से भी मैं उठवाऊँ हर सुबू-ए-शराब

खुला ये फूलों के होने से हाल ऐ ज़ाहिद
पस-ए-फ़ना भी है रिंदों को आरज़ू-ए-शराब

सुना है पास मसीहा के आफ़्ताब भी है
करेंगे मौत के हीले से जुस्तुजू-ए-शराब

न हो सकी कोई ताज़ीर-ए-मय-कशी साबित
ज़ियादा हद से बढ़ी आज गुफ़्तुगू-ए-शराब

गदा-ए-बादा हूँ उल्फ़त में चश्म-ए-मयगूँ के
तिरे फ़क़ीर का तोंबा बना कदू-ए-शराब

हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-ज़र हाथ पाँव काँपते हैं
तमाम मस्तों को राशा है रू-ब-रू-ए-शराब

'मुनीर' साक़ी-ए-कौसर से लूँ शराब-ए-तुहूर
कभी मैं आँख उठा कर न देखूँ सू-ए-शराब