जो तिरे पहलू में गुज़री ज़िंदगी अच्छी लगी
ग़म तिरा अच्छा लगा तेरी ख़ुशी अच्छी लगी
यास के मौसम में उस की दिल-लगी अच्छी लगी
आँख नम हो कर भी होंटों पर हँसी अच्छी लगी
दुख भी उस की राह में हैं सुख भी उस की राह में
मौत से हर आदमी को ज़िंदगी अच्छी लगी
हादसे पर हादसे ही हो रहे हैं क्या ख़बर
आसमाँ वाले को मेरी बेबसी अच्छी लगी
हो गए गुमराह वो आ कर तुम्हारे शहर में
सब को उस तहज़ीब-ए-नौ की रौशनी अच्छी लगी
ख़्वाब की वादी में तन्हा फिर रहा हूँ रोज़-ओ-शब
दोस्ती अच्छी न मुझ को रहबरी अच्छी लगी
जागती आँखों से साहिर देखता हूँ दहर को
गुलिस्ताँ में खिलने वाली हर कली अच्छी लगी
ग़ज़ल
जो तिरे पहलू में गुज़री ज़िंदगी अच्छी लगी
साहिर शेवी