जो शिकवा करते हैं 'हशमी' से कम-नुमाई का
उन्हें भी डर है ज़माने की कज-अदाई का
फिरे हैं धूप में साए को साथ साथ लिए
कि खुल न जाए भरम अपनी बे-नवाई का
मगर कुछ और है यारी की बात शौक़ से तुम
लगाओ चेहरों पे इल्ज़ाम आश्नाई का
अरक़ अरक़ थे नदामत की आँच से ख़ुद ही
गिला करें भी तो क्या तेरी बेवफ़ाई का
कुछ इस अदा से सताए गए हैं हम अब के
हर एक साँस में अंदाज़ है दुहाई का
चला तो हूँ तिरे हमराह कुछ क़दम ही सही
जो दे तो क्यूँ मुझे ता'ना शिकस्ता-पाई का
जो अपने दर पे सदा दी तो क्या मिला प्यारे
यही कि नाम डुबो आए हम गदाई का
निकल पड़े हो उसे ढूँडने मगर 'हशमी'
ये रास्ता है मिरी जान ना-रसाई का

ग़ज़ल
जो शिकवा करते हैं 'हशमी' से कम-नुमाई का
जलील हश्मी