जो ख़याल थे न क़यास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
जो मोहब्बतों की असास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
जिन्हें मानता ही नहीं ये दिल वही लोग मेरे हैं हम-सफ़र
मुझे हर तरह से जो रास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
मुझे लम्हा-भर की रफ़ाक़तों के सराब और सताएँगे
मिरी उम्र-भर की जो प्यास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
ये ख़याल सारे हैं आरज़ी ये गुलाब सारे हैं काग़ज़ी
गुल-ए-आरज़ू की जो बास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैं वो शरीक-ए-राह-ए-सफ़र हुए
जो मिरी तलब मिरी आस थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
मिरी धड़कनों के क़रीब थे मिरी चाह थे मिरा ख़्वाब थे
वो जो रोज़-ओ-शब मिरे पास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
ग़ज़ल
जो ख़याल थे न क़यास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
ऐतबार साजिद