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जो कहते हैं किधर दीवानगी है | शाही शायरी
jo kahte hain kidhar diwangi hai

ग़ज़ल

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

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जो कहते हैं किधर दीवानगी है
उन्हीं की हम-सफ़र दीवानगी है

तवक्कुल बे-नियाज़ी साथ हों तो
ग़म-ए-दीवार-ओ-दर दीवानगी है

सिसकते ख़्वाब आँखों में बसा कर
सितारों पर नज़र दीवानगी है

कमाल-ए-आदमी आगाही-ए-कल
मआल-ए-दीदा-वर दीवानगी है

दुआएँ बाइ'स-ए-तस्कीं हैं लेकिन
तमन्ना-ए-असर दीवानगी है

हवाएँ तीर की मानिंद हों जब
यक़ीन-ए-बाल-ओ-पर दीवानगी है

ये शहर-ए-ताजिरान-ए-दाद-ए-दिल है
तलाश-ए-चारागर दीवानगी है