जो हुई सो हुई जाने दो मिलो बिस्मिल्लाह
जाम-ए-मय हाथ से लो मेरे पियो बिस्मिल्लाह
मुंतज़िर आप के आने का कई दिन से हूँ
क्या है ताख़ीर क़दम-रंजा करो बिस्मिल्लाह
ले चुके दिल तो फिर अब क्या है सबब रंजिश का
जी भी हाज़िर है जो लेते हो तो लो बिस्मिल्लाह
मैं तो हूँ कुश्ता-ए-अबरू-ए-बुत-ए-मुसहफ़-ए-रू
मू-क़लम से मिरे तुर्बत पे लिखो बिस्मिल्लाह
ज़बह करना ही मुझे तुम को है मंज़ूर अगर
मैं भी हाज़िर हूँ मिरी जान उठो बिस्मिल्लाह
होते आज़ुर्दा हो आने से हमारे जो तुम
ख़ुश रहो मत हो ख़फ़ा हम चले लो बिस्मिल्लाह
ऐन राहत है मुझे बंदा-नवाज़ा इस में
क़दम आँखों पे मिरी आ के रखो बिस्मिल्लाह
जिन की रहते हो शब-ओ-रोज़ तुम अब सोहबत में
जाओ ऐ जान अब उन के ही रहो बिस्मिल्लाह
मस्त निकला है मय-ए-हुस्न में 'बेदार' वो शोख़
देखना गर न पड़े कहते चलो बिस्मिल्लाह
ग़ज़ल
जो हुई सो हुई जाने दो मिलो बिस्मिल्लाह
मीर मोहम्मदी बेदार