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जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है | शाही शायरी
jo hai yan aasaish-e-ranj-o-mehan mein mast hai

ग़ज़ल

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

बहराम जी

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जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
कूचा-ए-जानाँ में हम हैं क़ैस बन में मस्त है

तेरे कूचे में है क़ातिल रक़्स-गाह-ए-आशिक़ाँ
कोई ग़लताँ सर-ब-कफ़ कोई कफ़न में मस्त है

मय-कदे में बादा-कश बुत-ख़ाने में हैं बुत-परस्त
जो है आलम में वो अपनी अंजुमन में मस्त है

निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम से याँ मोअत्तर है दिमाग़
कोई मुश्क-चीं कोई मुश्क-ए-ख़ुतन में मस्त है

है कोई महव-ए-नमाज़ और ख़ुम-कदे में कोई मस्त
दिल मिरा इश्क़-ए-बुतान-ए-दिल-शिकन में मस्त है

है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश
और हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है

अक्स-ए-रू-ए-शम्अ-रू है मेरे दिल में जा-गुज़ीं
दिल मिरा इस आतिश-ए-लम'आ-फ़गन में मस्त है

है मिरा हर शेर-ए-तर 'बहराम' कैसा पुर-असर
जिस को देखो मज्लिस-ए-अहल-ए-सुख़न में मस्त है