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जो चुप रहूँ तो बताएँ वो घुँगनियाँ मुँह में | शाही शायरी
jo chup rahun to bataen wo ghungniyan munh mein

ग़ज़ल

जो चुप रहूँ तो बताएँ वो घुँगनियाँ मुँह में

निज़ाम रामपुरी

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जो चुप रहूँ तो बताएँ वो घुँगनियाँ मुँह में
जो कुछ कहूँ तो कहें क़ैंची है ज़बाँ मुँह में

ये एक बात है क़ासिद जो भेजता हूँ तुझे
वगरना दिल में जो उन के है वो यहाँ मुँह में

ज़मीं का कर दिया पैवंद हम को ऐ ज़ालिम!
न अब भी ख़ाक पड़े तेरे आसमाँ मुँह में

न कान रख के किसी ने सुनी हज़ार अफ़्सोस
तमाम उम्र रही ग़म की दास्ताँ मुँह में

वो ऐसे बिगड़े हुए हैं कि दाँत पीसते हैं
हम ऐसे चुप हैं कि गोया नहीं ज़बाँ मुँह में

ये बात क्या है जो होंटों में बड़बड़ाते हो
कहो न शौक़ से जो आए मेरी जाँ मुँह में

डरो असर से ख़ुदा जाने क्या हो क्या कुछ हो
घुटा हुआ है अभी आह का धुआँ मुँह में

कभी गिराने न दो आँसू हाल पर मेरे
लो आओ पानी तो टपकाओ मेरी जाँ मुँह में

ज़बान पर है ये किस किस की तज़्किरा अपना
पड़ी है बात न मेरी कहाँ कहाँ मुँह में

फिर ऐसे वादे से तस्कीं हो किस तरह मेरी
''नहीं'' है दिल में तुम्हारे अगर है ''हाँ'' मुँह में

उसी का ध्यान है जब तक कि तन में जाँ है 'निज़ाम'
उसी का ज़िक्र है जब तक कि है ज़बाँ मुँह में