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जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है | शाही शायरी
jo bas mein hai wo kar jaana zaruri ho gaya hai

ग़ज़ल

जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है

हैदर क़ुरैशी

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जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है
तिरी चाहत में मर जाना ज़रूरी हो गया है

हमें तो अब किसी अगली मोहब्बत के सफ़र पर
नहीं जाना था पर जाना ज़रूरी हो गया है

सितारा जब मिरा गर्दिश से बाहर आ रहा है
तो फिर दिल का ठहर जाना ज़रूरी हो गया है

दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
ख़िज़ाँ-रुत का गुज़र जाना ज़रूरी हो गया है

अंधेरा इस क़दर गहरा गया है दिल के अंदर
कोई सूरज उभर जाना ज़रूरी हो गया है

बहुत मुश्किल हुआ अंदर के रेज़ों को छुपाना
सो अब अपना बिखर जाना ज़रूरी हो गया है

तुझे मैं अपने हर दुख से बचाना चाहता हूँ
तिरे दिल से उतर जाना ज़रूरी हो गया है

नए ज़ख़्मों का हक़ बनता है अब इस दिल पे 'हैदर'
पुराने ज़ख़्म भर जाना ज़रूरी हो गया है