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जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी | शाही शायरी
jo baat shart-e-visal Thahri wahi hai ab wajh-e-bad-gumani

ग़ज़ल

जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी

अज़्म बहज़ाद

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जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
इधर है इस बात पर ख़मोशी उधर है पहली से बे-ज़बानी

किसी सितारे से क्या शिकायत कि रात सब कुछ बुझा हुआ था
फ़सुर्दगी लिख रही थी दिल पर शिकस्तगी की नई कहानी

अजीब आशोब-वज़्अ'-दारी हमारे आ'साब पर है तारी
लबों पे तरतीब-ए-ख़ुश-कलामी दिलों में तंज़ीम-ए-नौहा-ख़्वानी

हमारे लहजे में ये तवाज़ुन बड़ी सऊबत के बअ'द आया
कई मिज़ाजों के दश्त देखे कई रवय्यों की ख़ाक छानी