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जो बात है तेरी सो निराली | शाही शायरी
jo baat hai teri so nirali

ग़ज़ल

जो बात है तेरी सो निराली

मीर असर

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जो बात है तेरी सो निराली
उश्शाक़-कुशी नई निकाली

तीर-ए-मिज़्गान भी है उस पर
अबरू की तेग़ भी सँभाली

समझे है ज़ाहिरन वो दिल की
देता है जो दर-जवाब गाली

नाख़ुन-ज़न हैं बदल ये अंगुश्त
ये सिर्फ़ नहीं हिना की लाली

हैं रोज़-ए-अज़ल से हम गिरफ़्तार
देखी न कभू फ़राग़-बाली

तू तो है ही प मैं भी प्यारे
हूँ बे-परवाई ला-उबाली

किस तरह दिखाऊँ आह तुझ को
मैं अपनी ये ख़राब-हाली

हम हैं बंदे दनी ओ असफ़ल
और आप का है मिज़ाज आली

आईना-ए-दिल में महव हो कर
सूरत ही कुछ और अब निकाली

है तुझ से ही आशिक़ों की ख़ूबी
या हज़रत-ए-'दर्द' मेरे वाली

दीवान-ए-'असर' तमाम देखा
है उस में हर एक शेर आली