जो बात है तेरी सो निराली
उश्शाक़-कुशी नई निकाली
तीर-ए-मिज़्गान भी है उस पर
अबरू की तेग़ भी सँभाली
समझे है ज़ाहिरन वो दिल की
देता है जो दर-जवाब गाली
नाख़ुन-ज़न हैं बदल ये अंगुश्त
ये सिर्फ़ नहीं हिना की लाली
हैं रोज़-ए-अज़ल से हम गिरफ़्तार
देखी न कभू फ़राग़-बाली
तू तो है ही प मैं भी प्यारे
हूँ बे-परवाई ला-उबाली
किस तरह दिखाऊँ आह तुझ को
मैं अपनी ये ख़राब-हाली
हम हैं बंदे दनी ओ असफ़ल
और आप का है मिज़ाज आली
आईना-ए-दिल में महव हो कर
सूरत ही कुछ और अब निकाली
है तुझ से ही आशिक़ों की ख़ूबी
या हज़रत-ए-'दर्द' मेरे वाली
दीवान-ए-'असर' तमाम देखा
है उस में हर एक शेर आली

ग़ज़ल
जो बात है तेरी सो निराली
मीर असर