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जिस्म ओ जाँ सुलगते हैं बारिशों का मौसम है | शाही शायरी
jism o jaan sulagte hain barishon ka mausam hai

ग़ज़ल

जिस्म ओ जाँ सुलगते हैं बारिशों का मौसम है

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

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जिस्म ओ जाँ सुलगते हैं बारिशों का मौसम है
अब तो लौट कर आ जा चाहतों का मौसम है

मेरे ख़ुश्क होंटों पर क़हक़हे तो हैं लेकिन
मेरी रूह के अंदर सिसकियों का मौसम है

ख़्वाब और नींदों का ख़त्म हो गया रिश्ता
मुद्दतों से आँखों में रत-जगों का मौसम है

था मिरे ख़यालों में गुलशन इक तमन्ना का
मुझ को ये गुमाँ गुज़रा ख़ुशबुओं का मौसम है

शाख़-ए-ग़म पे खिल उठ्ठे फूल कुछ उमीदों के
'शम्अ' क़र्या-ए-दिल में ख़्वाहिशों का मौसम है