जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश
फिर उस के संग-ए-तुर्बत से नहीं बुझती कभू आतिश
लगाई तू ने याँ तक मय-कदे में तुंद-ख़ू आतिश
कि प्याला है पुर-आतिश और सुराही ता-गुलू आतिश
ये आतिश बाग़ में हम ने लगी देखी थी कल तुझ बिन
नसीम आतिश चमन आतिश गुल आतिश गुल की बू आतिश
लिखें हम किस तरह काग़ज़ पर अपना सोज़-ए-दिल तुझ को
कि दिल आतिश ज़बाँ आतिश दम आतिश गुफ़्तुगू आतिश
तफ़-ए-दिल के बुझाने को हमारी ख़ाक पर साक़ी
छिड़कना है मय-गुलगूँ की अज़-दस्त-ए-सुबू आतिश
हमारे आशियाँ के ख़ार-ओ-ख़स के तार-ओ-सोज़न से
कर इस चाक क़बा से शो'ले को अपने रफ़ू आतिश
'मुहिब' के दिल में दाग़-ए-इश्क़ का क्यूँकर न गुल फूटे
कि देता है बजाए आब आँखों से लहू आतिश
ग़ज़ल
जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश
वलीउल्लाह मुहिब