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जिस ने तेरी याद में सज्दे किए थे ख़ाक पर | शाही शायरी
jis ne teri yaad mein sajde kiye the KHak par

ग़ज़ल

जिस ने तेरी याद में सज्दे किए थे ख़ाक पर

ताहिर फ़राज़

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जिस ने तेरी याद में सज्दे किए थे ख़ाक पर
उस के क़दमों के निशाँ पाए गए अफ़्लाक पर

वाक़िआ' ये कुन-फ़काँ से भी बहुत पहले का है
इक बशर का नूर था क़िंदील में अफ़्लाक पर

दोस्तों की महफ़िलों से दूर हम होते गए
जैसे जैसे सिलवटें पड़ती गईं पोशाक पर

मख़मली होंटों पे बोसों की नमी ठहरी हुई
साँस उलझी ज़ुल्फ़ बिखरी सिलवटें पोशाक पर

पानियों की साज़िशों ने जब भँवर डाले 'फ़राज़'
तब्सिरा करते रहे सब डूबते तैराक पर