जिस में अमल का जोश नहीं वो शबाब क्या
मस्ती तो दिल में चाहिए शग़्ल-ए-शराब क्या
क्या दर्द-ए-दिल मुहर्रिक-ए-ख़िदमत नहीं रहा
जन्नत ठहर गई है बिना-ए-सवाब क्या
यूँही नज़र उठी थी ज़रा दैर की तरफ़
मिलता है अब ये देखें हरम से ख़िताब क्या
अपनों से ख़ौफ़ है कि कहीं ग़ैर ही न हों
है इस से बढ़ के और जहाँ में अज़ाब क्या
उम्मीद दोस्तों से वफ़ा की है आज तक
अब तक नहीं मिली नज़र-ए-कामयाब क्या
आख़िर कहाँ से आ गईं ये कज-अदाइयाँ
आदम की थी सरिश्त में मिट्टी ख़राब क्या
हाल-ए-ज़बूँ के आइने दुनिया में हैं बहुत
देखी नहीं कभी कोई चश्म-ए-सराब क्या
अपनी बिसात जान के ख़ामोश हो गया
शाइ'र हूँ मैं तो दूँगा किसी को जवाब क्या
हँस हँस के हम-नशीनों ने चरके लगाए 'अम्न'
इन मेहरबानियों के करम का हिसाब क्या
ग़ज़ल
जिस में अमल का जोश नहीं वो शबाब क्या
गोपी नाथ अम्न