जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए
शिकवे जो दिल में थे सो फ़रामोश हो गए
साक़ी नहीं है साग़र-ए-मय की हमें तलब
आँखें ही तेरी देख के बेहोश हो गए
सुनने को हुस्न-ए-यार की ख़ूबी ब-रंग-ए-गुल
आज़ा मिरे बदन के सभी गोश हो गए
करते थे अपने हुस्न की तारीफ़ गुल-रुख़ाँ
उस लाला-रू को देख के ख़ामोश हो गए
ऐ जान देखते ही मुझे दूर से तुम आज
ये कौन सी अदा थी कि रू-पोश हो गए
रहते थे बे-हिजाब मिरे पास जिन दिनों
वे रोज़ हाए तुम को फ़रामोश हो गए
दुनिया ओ दीन की न रही हम को कुछ ख़बर
होते ही उस के सामने बेहोश हो गए
'बेदार' बस-कि रोए हम उस गुल की याद में
सर-ता-क़दम सरिश्क से गुल-पोश हो गए
ग़ज़ल
जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए
मीर मोहम्मदी बेदार