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जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए | शाही शायरी
jis din tum aa ke humse ham-aghosh ho gae

ग़ज़ल

जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए

मीर मोहम्मदी बेदार

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जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए
शिकवे जो दिल में थे सो फ़रामोश हो गए

साक़ी नहीं है साग़र-ए-मय की हमें तलब
आँखें ही तेरी देख के बेहोश हो गए

सुनने को हुस्न-ए-यार की ख़ूबी ब-रंग-ए-गुल
आज़ा मिरे बदन के सभी गोश हो गए

करते थे अपने हुस्न की तारीफ़ गुल-रुख़ाँ
उस लाला-रू को देख के ख़ामोश हो गए

ऐ जान देखते ही मुझे दूर से तुम आज
ये कौन सी अदा थी कि रू-पोश हो गए

रहते थे बे-हिजाब मिरे पास जिन दिनों
वे रोज़ हाए तुम को फ़रामोश हो गए

दुनिया ओ दीन की न रही हम को कुछ ख़बर
होते ही उस के सामने बेहोश हो गए

'बेदार' बस-कि रोए हम उस गुल की याद में
सर-ता-क़दम सरिश्क से गुल-पोश हो गए