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जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ | शाही शायरी
jis din sin main yar bujhta hun

ग़ज़ल

जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ

सिराज औरंगाबादी

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जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ
कब सब्र-ओ-क़रार बूझता हूँ

ज़िंदाँ में मुझे है सैर-ए-गुलशन
ज़ंजीर कूँ हार बूझता हूँ

गुलशन में बग़ैर वस्ल-ए-गल-रू
हर फूल कूँ ख़ार बूझता हूँ

तुझ शौक़ में दिल हुआ है तम्बूर
हर आह कूँ तार बूझता हूँ

अज़-बस कि हुआ हूँ सब सीं यक-रंग
अग़्यार कूँ यार बूझता हूँ

मुश्ताक़ हूँ जब सीं सर्व-क़द का
शमशाद कूँ दार बूझता हूँ

मानिंद-ए-'सिराज' सोज़-ओ-ग़म में
जलने कूँ बहार बूझता हूँ