जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है
दीदार उस का मेरी अँखाँ की मुराद है
रखता है बर में दिलबर-ए-रंगीं ख़याल कूँ
मानिंद आरसी के जो साफ़ ए'तिक़ाद है
शायद कि दाम-ए-इश्क़ में ताज़ा हुआ है बंद
वादे पे गुल-रुख़ाँ के जिसे ए'तिमाद है
बाक़ी रहेगा जौर-ओ-सितम रोज़-ए-हश्र लग
तुझ ज़ुल्फ़ की जफ़ा में निपट इम्तिदाद है
मक़्सूद-ए-दिल है उस का ख़याल ऐ 'वली' मुझे
ज्यूँ मुझ ज़बाँ पे नाम-ए-मोहम्मद मुराद है
ग़ज़ल
जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है
वली मोहम्मद वली