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जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है | शाही शायरी
jin dinon gham ziyaada hota hai

ग़ज़ल

जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है

बासिर सुल्तान काज़मी

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जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है
आँख में नम ज़ियादा होता है

कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं
कुछ वो बरहम ज़ियादा होता है

दर्द दिल का भी कोई ठीक नहीं
ख़ुद-बख़ुद कम ज़ियादा होता है

सब से पहले उन्हें झुकाते हैं
जिन में दम-ख़म ज़ियादा होता है

क़ैस पर ज़ुल्म तो हुआ 'बासिर'
फिर भी मातम ज़ियादा होता है