जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
क्या कहें अब तुझ को हम तुझ को कहें अब क्या न हम
उठ गए हम दरमियाँ से उठ गया हम से हिजाब
रह गए हम उस के हो कर रह गया पर्दा, न हम
दौलत-ए-दिल क्या है जा कर अहल-ए-दिल से पूछिए
माल था अपना भी कुछ जाने मगर रखना न हम
रंज-ए-रुस्वाई नहीं दुनिया है रुस्वाई का घर
हैं सभी रुस्वा तो यूँ समझो न तुम रुस्वा न हम
फ़ाएदा क्या रहती दुनिया तक अगर कोई रहा
ये तो ज़ाहिर है कि रहने के लिए दुनिया न हम
खा गई अहल-ए-हवस की वज़्अ' अहल-ए-इश्क़ को
बात किस की रह गई कोई अदू सच्चा न हम
ख़ुद-फ़रामोशी ने रक्खा है गिरफ़्तार-ए-ख़ुदी
छूटते क्यूँ छोड़ते दामन अगर अपना न हम
इस से कुछ होती अगर 'नातिक़' हमें तस्कीन-ए-तब्अ'
आज तक सब जम्अ' कर लेते कलाम अपना न हम
ग़ज़ल
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
नातिक़ गुलावठी