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जी तरसता है यार की ख़ातिर | शाही शायरी
ji tarasta hai yar ki KHatir

ग़ज़ल

जी तरसता है यार की ख़ातिर

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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जी तरसता है यार की ख़ातिर
ऊस सीं बोस-ओ-कनार की ख़ातिर

तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
जूँ कि बुलबुल बहार की ख़ातिर

हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
तोड़ने कूँ ख़ुमार की ख़ातिर

बस है ऊस संग-दिल का नक़्श-ए-क़दम
मेरी लौह-ए-मज़ार की ख़ातिर

उम्र गुज़री कि हैं खुली 'हातिम'
चश्म-ए-दिल इंतिज़ार की ख़ातिर