जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
क्या पढ़ें पढ़ कर बुझी बे-नूर सतरें क्या करें
कुछ अजब हालत है ऐ दिल कुछ समझ आता नहीं
सो रहें घर जा के या गलियों में घूमें क्या करें
वास्ता पत्थर से पड़ जाए जहाँ सोचूँ वहाँ
क्या करें ज़ोर-ए-बयाँ क़लमें दवातें क्या करें
ऐसी यख़-बस्ता हवा में कोंपलें फूटेंगी क्या?
बारिशों की आरज़ू बे-बर्ग शाख़ें क्या करें
हो गई दलदल ज़मीं धँसते ही रह जाते हैं याँ
क्या करें मोहकम बिनाएँ सुर्ख़ ईंटें क्या करें
शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर
हाल अपना सुब्ह तक बे-रब्त नब्ज़ें क्या करें
ग़ज़ल
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर