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जी में चुहलें थीं जो कुछ सो तो गईं यार के साथ | शाही शायरी
ji mein chuhlen thin jo kuchh so to gain yar ke sath

ग़ज़ल

जी में चुहलें थीं जो कुछ सो तो गईं यार के साथ

क़ाएम चाँदपुरी

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जी में चुहलें थीं जो कुछ सो तो गईं यार के साथ
सर पटकना ही पड़ा अब दर-ओ-दीवार के साथ

इक हमीं ख़ार थे आँखों में सभों की सो चले
बुलबुलो ख़ुश रहो अब तुम गुल-ओ-गुलज़ार के साथ

ख़ार-ए-मरदूद-ए-चमन मुझ को किया रोज़-ए-अज़ल
जिन ने भेजा है तुझे गूना-ए-गुलज़ार के साथ

मैं दिवाना हूँ सदा का मुझे मत क़ैद करो
जी निकल जाएगा ज़ंजीर की झंकार के साथ

यारो कहते थे जो तुम लाला-ओ-गुल है सो कहाँ
सर पटकने तो न आया था में कोहसार के साथ

हाए सय्याद ये इंसाफ़ से तेरे है बईद
याँ तलक कीजे सितम अपने गिरफ़्तार के साथ

गरचे बुलबुल हूँ मैं 'क़ाएम' वले इस बाग़ के बीच
फ़र्क़ कोई न करे गुल को जहाँ ख़ार के साथ