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जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल | शाही शायरी
jigar ka jun shama kash ya-rab ho dagh raushan murad hasil

ग़ज़ल

जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल

शाह नसीर

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जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल
कि दिल को लौ लग रही यही है चराग़ रौशन मुराद हासिल

मुदाम कैफ़िय्यत अपने दिल में मय-ए-मोहब्बत के नश्शे की है
कि साक़ी इस आफ़्ताब से है दिमाग़ रौशन मुराद हासिल

असीर-ए-कुंज-ए-क़फ़स तो हो तुम ये अनदलीबो सदा ये बोलो
शिताब या-रब चराग़-ए-गुल से हो बाग़ रौशन मुराद हासिल

लगे न क्यूँ आग तेरे सर से कि इश्क़ में मैं ने पाँव रक्खा
बजा है ऐ शम्अ तुझ को कहना दिमाग़ रौशन मुराद हासिल

जो यार आता है मेरे घर में तो जल्द ख़ाना-ख़राब उड़ जा
जहाँ में तेरा शुगूँ ये सब पर है ज़ाग़ रौशन मुराद हासिल

फिरे है ऐ चर्ख़ तू तो बाँधे शिकम पे ख़ुर्शीद का ये गुर्दा
कहे न क्यूँकर कि गुर्सिना हो चराग़ रौशन मुराद हासिल

जहाँ में क्या ढूँढता फिरे है सुराग़ यारान-ए-रफ़्तगाँ का
'नसीर' है चश्म-ए-नक़्श-ए-पा से सुराग़ रौशन मुराद हासिल