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झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर | शाही शायरी
jhilmilate hue din-raat hamare le kar

ग़ज़ल

झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर

आलोक श्रीवास्तव

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झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर
कौन आया है हथेली पे सितारे ले कर

हम उसे आँखों की देहरी नहीं चढ़ने देते
नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे ले कर

रात लाई है सितारों से सजी क़िंदीलें
सर-निगूँ दिन है धनक वाले नज़ारे ले कर

एक उम्मीद बड़ी दूर तलक जाती है
तेरी आवाज़ के ख़ामोश इशारे ले कर

रात शबनम से भिगो देती है चेहरा चेहरा
दिन चला आता है आँखों में शरारे ले कर

एक दिन उस ने मुझे पाक नज़र से चूमा
उम्र-भर चलना पड़ा मुझ को सहारे ले कर