जवानी के तराने गा रहा हूँ
दबी चिंगारियाँ सुलगा रहा हूँ
मिरी बज़्म-ए-वफ़ा से जाने वालो
ठहर जाओ कि मैं भी आ रहा हूँ
बुतों को क़ौल देता हूँ वफ़ा का
क़सम अपने ख़ुदा की खा रहा हूँ
वफ़ा का लाज़मी था ये नतीजा
सज़ा अपने किए की पा रहा हूँ
ख़ुदा-लगती कहो बुत-ख़ाने वालो
तुम्हारे साथ में कैसा रहा हूँ
ज़हे वो गोशा-ए-राहत कि जिस में
हुजूम-ए-रंज ले कर जा रहा हूँ
चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हूँ मैं
इधर जलता उधर बुझता रहा हूँ
नए काबे की बुनियादों से पूछो
पुराने बुत-कदे क्यूँ ढा रहा हूँ
नहीं काँटे भी क्या उजड़े चमन में
कोई रोके मुझे मैं जा रहा हूँ
हुई जाती है क्यूँ बेताब मंज़िल
मुसलसल चल रहा हूँ आ रहा हूँ
'हफ़ीज़' अपने पराए बन रहे हैं
कि मैं दिल को ज़बाँ पे ला रहा हूँ
ग़ज़ल
जवानी के तराने गा रहा हूँ
हफ़ीज़ जालंधरी