जश्न बरबाद ख़यालों का मना लूँ तो चलूँ
मिज़ा-ए-शौक़ को ग़म-साज़ बना लूँ तो चलूँ
मेरी हस्ती में सिमट आए अँधेरे ग़म के
शम-ए-उल्फ़त की तिरे ग़म में जला लूँ तो चलूँ
दिल-ए-बेताब ठहर अश्क-ए-तमन्ना के तुफ़ैल
बज़्म-ए-फ़ुर्क़त को सर-ए-शाम सजा लूँ तो चलूँ
कैफ़ तारी है बहुत आज तसव्वुर में तिरे
अब ज़रा होश के माहौल में आ लूँ तो चलूँ
उन का दीदार मिरे बस का अभी काम नहीं
अपनी नज़रों से हिजाबात उठा लूँ तो चलूँ
अभी सैलाब पे दरिया है सफ़ीना-बर्दोश
मैं किसी मौज की आग़ोश में आ लूँ तो चलूँ
जल्वा-गर सामने है आज मुबीन उन का जमाल
प्यास आँखों की ज़रा और बुझा लूँ तो चलूँ
ग़ज़ल
जश्न बरबाद ख़यालों का मना लूँ तो चलूँ
सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी