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जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी | शाही शायरी
jamal-e-nastarani rang-o-bu-e-yasmani

ग़ज़ल

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

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जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी
गुलों ने सीख लिया तुम से ज़ौक़-ए-पैरहनी

ज़माना-साज़ न हो गर बुतों की सीम-तनी
तो अज़्म-ए-बुत-शिकनी भी है ऐन बरहमनी

सवाद-ए-कोह-ओ-बयाबाँ में शाम-ए-बे-वतनी
हमें लुभा के कहाँ लाए आहू-ए-ख़ुतनी

हज़ार रंग में पिन्हाँ है आरज़ू-ए-हयात
दुआ-ए-नीम-शबी ता जुनून-ए-कोह-कनी

ब-नाम-ए-दौलत-ए-हुस्न-ओ-जमाल बे-पायाँ
समझ के कीजिए अहल-ए-तलब की दिल-शिकनी

मजाल-ए-आह न थी दिल को बज़्म-ए-जानाँ में
ये एहतियात भी थी मुक़तज़ा-ए-गुल-बदनी

वो रंज-ए-राह-ए-तमन्ना में याद-ए-यार-ए-अज़ीज़
वो दूर बजते हुए से रबाब-ए-अंजुमनी