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जल्वा-सामाँ रुख़-ए-जानाँ न हुआ था सो हुआ | शाही शायरी
jalwa-saman ruKH-e-jaanan na hua tha so hua

ग़ज़ल

जल्वा-सामाँ रुख़-ए-जानाँ न हुआ था सो हुआ

असअ'द बदायुनी

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जल्वा-सामाँ रुख़-ए-जानाँ न हुआ था सो हुआ
ज़र्रा ज़र्रा मह-ए-ताबाँ न हुआ था सो हुआ

कुछ तो पहले से ही अफ़्सुर्दा थे अहल-ए-गुलशन
कुछ ये ग़म ख़ून-ए-बहाराँ न हुआ था सो हुआ

मैं ने देखा है तिरी कम-निगही का अंजाम
आश्ना-ए-ग़म-ए-दौराँ न हुआ था सो हुआ

ये इनायत ये तिरा जूद-ओ-करम है कि मुझे
शिकवा-ए-तंगी-ए-दामाँ न हुआ था सो हुआ

अल्लाह अल्लाह मय-ओ-मीना का असर भी क्या है
कुछ इलाज-ए-ग़म-ए-दौराँ न हुआ था सो हुआ

ये तिरे शे'र तिरा हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल 'असअद'
तिरे शे'रों से जो शादाँ न हुआ था सो हुआ