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जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए | शाही शायरी
jalwa-e-arbab-e-duniya dekhiye

ग़ज़ल

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

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जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
स्वाँग है ये भी तमाशा देखिए

सैर को उठ्ठे तो हैं वहशी मिज़ाज
बाग़ जाते हैं कि सहरा देखिए

गर-चे तिल है उस के मुँह पर ख़ुशनुमा
नहस है क्या एक तारा देखिए

रोइए जितना रुलाए हिज्र-ए-यार
घर में बैठे सैर-ए-दरिया देखिए

चर्ख़-ए-मीनाई मुआफ़िक़ हो अगर
दौर-दौर-ए-जाम-ए-सहबा देखिए

या-इलाही ख़ैर फिर आए बहार
क्या हरारा लाए सौदा देखिए

कल जो कुछ सूरत हुई थी मिट गई
और ही है आज नक़्शा देखिए

अबरुओं में फिर गिरह पड़ने लगी
बल तबीअ'त में फिर आया देखिए

दर्दमंद-ए-चश्म हैं दरमाँ-तलब
देखते भी हैं मसीहा देखिए

इंतिज़ार-ए-यार कहता है यही
ज़िंदगी जब तक है रस्ता देखिए

वस्ल साबित है तफ़ादिल से मगर
कब वो आता है ज़माना देखिए

क्या बला-ए-बद है ये बाद-ए-ख़िज़ाँ
हो गई सब फूल पत्ता देखिए

बज़्म-ए-ना-पुरसाँ में क़िस्मत लाई है
बैठिए अपनी अगर जा देखिए

'बहर' अगर चमका सितारा ऐश का
लैली-ए-गर्दूं का मुजरा देखिए