जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं
ऐ पैकर-ए-ग़ज़ल तिरे बीमार कौन हैं
ख़ुश्बू की साअ'तों के तलबगार कौन हैं
इस ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बू के गिरफ़्तार कौन हैं
कब तक छुपे रहेंगे अज़ल ख़ामुशी के भेद
शहर-ए-सदा के महरम-ए-असरार कौन हैं
किरनों की रहगुज़ार पे उड़ती है धूल सी
जो उस तरफ़ गए हैं वो जी-दार कौन हैं
सीनों में ले के वलवला-ए-ज़िंदगी की आग
अस्र-ए-रवाँ से बर-सर-ए-पैकार कौन हैं
सदियों से मुंतज़िर हैं सुलगती मसाफ़तें
आसाइश-ए-जुनूँ के तलबगार कौन हैं
सरमस्त कर गई जिन्हें अपने लहू की लय
वो अर्सा-ए-नबर्द के फ़नकार कौन हैं
में तो ग़रीब-ए-शहर-ए-सुख़न हूँ मगर 'जलील'
फ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-इज़हार कौन हैं
ग़ज़ल
जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं
हसन अख्तर जलील