जल्द हुस्न-ओ-जमाल जाता है
नहीं रहता ये हाल जाता है
जब तलक देखता नहीं उस को
दिल में क्या क्या ख़याल जाता है
कौन से वक़्त अर्ज़-ए-हाल करूँ
वो तो हर वक़्त टाल जाता है
जिस का होता है ग़म से दिल भारी
वो तिरे दर पे डाल जाता है
सरसों आँखों में क्यूँ न फूले अब
ज़र्द ओढ़े दो-शाल जाता है
साफ़ समझा नहीं मुझे आशिक़
बात कहते सँभाल जाता है
जान देता हूँ जल्द देखूँ तो
नामा-बर कैसी चाल जाता है
नुक्ता-चीनों ने कुछ कहा तो क्या
कोई इस में कमाल जाता है
कुछ रिहाई नज़र नहीं आती
यूँ ही अब का भी साल जाता है
आह मिस्ल-ए-शब-ए-जवानी जल्द
क्या ये रोज़-ए-विसाल जाता है
दिलबरी वो सनम करे मेरी
कुछ भला एहतिमाल जाता है
यूँ ख़ुदा की ख़ुदाई है मामूर
पर कब अपना ख़याल जाता है
तू तो ख़ुश हो 'हसन' के जाने से
तेरा रंज-ओ-मलाल जाता है
ग़ज़ल
जल्द हुस्न-ओ-जमाल जाता है
मीर हसन