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जैसी है बदन में गुल-रुख़ के वैसी ही नज़ाकत बातों में | शाही शायरी
jaisi hai badan mein gul-ruKH ke waisi hi nazakat baaton mein

ग़ज़ल

जैसी है बदन में गुल-रुख़ के वैसी ही नज़ाकत बातों में

जावेद जमील

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जैसी है बदन में गुल-रुख़ के वैसी ही नज़ाकत बातों में
होंटों में है जितनी शीरीनी उतनी ही हलावत बातों में

क्या ख़ूब तवाज़ुन चलने में क्या ख़ूब लताफ़त हँसने में
क्या ख़ूब अदाओं में शोख़ी क्या ख़ूब शरारत बातों में

आँखों में है नश्शा सा छाया रुख़्सार हुए सुर्ख़ी माइल
होंटों पे लरज़ते हैं अरमाँ पुर-कैफ़ हरारत बातों में

ज़ीनत का तरीक़ा क्या कहने फैशन का सलीक़ा क्या कहने
आदाब की रंगत कामों में अशआ'र की निकहत बातों में

बेताब हैं जिस को सुनने को वो बात न लाएँगे लब पर
मसहूर वो रक्खेंगे फिर भी ऐसी है नफ़ासत बातों में

पर्वाज़ में हस्ती की हम को कितनी ही बुलंदी हो हासिल
आए न मिज़ाजों में शेख़ी आए न रऊनत बातों में

हल सारे मसाइल हो जाएँ आपस की कुदूरत मिट जाए
हो झूट से सब को बे-ज़ारी हो रंग-ए-सदाक़त बातों में

इस दौर के शाएर में लोगो तहज़ीब ओ शुऊ'र ओ सोज़ कहाँ
मेआ'र वही है शेरों का जैसी है जिहालत बातों में

'जावेद' अजब अहबाब तिरे करते हैं ये ज़ाएअ' वक़्त तिरा
हैं इल्म से कोसों दूर मगर फिर भी है तवालत बातों में