जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता
मैं हमेशा तो मोहब्बत में नहीं रह सकता
खुल के रो भी सकूँ और हँस भी सकूँ जी भर के
अभी इतनी भी फ़राग़त में नहीं रह सकता
दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है
मैं तो इस शोर-ए-क़यामत में नहीं रह सकता
कूच कर जाएँ जहाँ से मिरे दुश्मन ऐ दोस्त
मैं वहाँ भी किसी सूरत में नहीं रह सकता
कोई ख़तरा है मुझे और तरह का ऐ दोस्त
मैं जो अब तेरी हिफ़ाज़त में नहीं रह सकता
चाहिए है मुझे कुछ और ही माहौल कि मैं
और अब अपनी रिफ़ाक़त में नहीं रह सकता
कुछ भी मैं करता-कराता तो नहीं हूँ लेकिन
बावजूद इस के फ़राग़त में नहीं रह सकता
शक मुझे यूँ तो ख़यानत का नहीं है कोई
मैं किसी की भी अमानत में नहीं रह सकता
वैसे रहने को तो ख़ुश-बाश ही रहता हूँ 'ज़फ़र'
सच जो पूछें तो हक़ीक़त में नहीं रह सकता

ग़ज़ल
जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता
ज़फ़र इक़बाल