जैसे ही ज़ीना बोला तह-ख़ाने का
कुंडली मार के बैठा साँप ख़ज़ाने का
हम भी ज़ख़्म-तलब थे अपनी फ़ितरत में
वो भी कुछ सच्चा था अपने निशाने का
राहिब अपनी ज़ात में शहर आबाद करें
दैर के बाहर पहरा है वीराने का
बात कही और कह कर ख़ुद ही काट भी दी
ये भी इक पैराया था समझाने का
सुब्ह-सवेरे शबनम चाटने वाले फूल
देख लिया ख़म्याज़ा प्यास बुझाने का
बंजर मिट्टी पर भी बरस ऐ अब्र-ए-करम
ख़ाक का हर ज़र्रा मक़रूज़ है दाने का
'तालिब' उस को पाना तो दुश्वार न था
अंदेशा था ख़ुद अपने खो जाने का
ग़ज़ल
जैसे ही ज़ीना बोला तह-ख़ाने का
तालिब जोहरी