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जहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए | शाही शायरी
jahl-e-KHirad ne din ye dikhae

ग़ज़ल

जहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए

जिगर मुरादाबादी

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जहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए
घट गए इंसाँ बढ़ गए साए

हाए वो क्यूँकर दिल बहलाए
ग़म भी जिस को रास न आए

ज़िद पर इश्क़ अगर आ जाए
पानी छिड़के आग लगाए

दिल पे कुछ ऐसा वक़्त पड़ा है
भागे लेकिन राह न पाए

कैसा मजाज़ और कैसी हक़ीक़त
अपने ही जल्वे अपने ही साए

झूटी है हर एक मसर्रत
रूह अगर तस्कीन न पाए

कार-ए-ज़माना जितना जितना
बनता जाए बिगड़ता जाए

ज़ब्त-ए-मोहब्बत शर्त-ए-मोहब्बत
जी है कि ज़ालिम उमडा आए

हुस्न वही है हुस्न जो ज़ालिम
हाथ लगाए हाथ न आए

नग़्मा वही है नग़्मा कि जिस को
रूह सुने और रूह सुनाए

राह-ए-जुनूँ आसान हुई है
ज़ुल्फ़ ओ मिज़ा के साए साए