EN اردو
जहाँ-दार पे वार चलने लगा | शाही शायरी
jahan-dar pe war chalne laga

ग़ज़ल

जहाँ-दार पे वार चलने लगा

ख़ालिद महमूद

;

जहाँ-दार पे वार चलने लगा
ग़ुलामों का दरबार चलने लगा

अज़ल से किसी शय में गर्दिश न थी
चला मैं तो संसार चलने लगा

ख़ुदा रक्खे अमरीका-ओ-रूस को
मियाँ अपना अख़बार चलने लगा

तबस्सुम तकल्लुम जवाँ हो गए
मुबारक हो घर-बार चलने लगा

अभी धूप 'ख़ालिद' पे आई न थी
कि दीवार दीवार चलने लगा