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जफ़ा देखनी थी सितम देखना था | शाही शायरी
jafa dekhni thi sitam dekhna tha

ग़ज़ल

जफ़ा देखनी थी सितम देखना था

अज़ीज़ हैदराबादी

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जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
नसीबों में रंज-ओ-अलम देखना था

वो आते न आते शब-ए-व'अदा लेकिन
मुझे दे के सर की क़सम देखना था

ख़जालत हुई उस के कूचे में क्या क्या
मुझे पहले नक़्श-ए-क़दम देखना था

मुझे देखनी तेरी हिम्मत थी साक़ी
बहुत देखना था न कम देखना था

कटी शाम-ए-फ़ुर्क़त 'अज़ीज़' आह क्यूँ-कर
ज़रा आईना सुब्ह-दम देखना था