जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
नसीबों में रंज-ओ-अलम देखना था
वो आते न आते शब-ए-व'अदा लेकिन
मुझे दे के सर की क़सम देखना था
ख़जालत हुई उस के कूचे में क्या क्या
मुझे पहले नक़्श-ए-क़दम देखना था
मुझे देखनी तेरी हिम्मत थी साक़ी
बहुत देखना था न कम देखना था
कटी शाम-ए-फ़ुर्क़त 'अज़ीज़' आह क्यूँ-कर
ज़रा आईना सुब्ह-दम देखना था
ग़ज़ल
जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
अज़ीज़ हैदराबादी