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जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब | शाही शायरी
jaDaw chuDiyon ke hathon mein phaban kya KHub

ग़ज़ल

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

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जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब
भरे भरे तिरे बाज़ू पे नौ-रतन क्या ख़ूब

खजूरी चोटी के क़ुर्बान वाह क्या कहना
निसार परियों के मू-ब-मू शिकन क्या ख़ूब

नई जवानी का जोश और उभार सीने का
दो-शाला ढलका हुआ सर से बाँकपन क्या ख़ूब

अजब बहार है बेलों की और बूटों की
परी दुपट्टा तिरा ग़ैरत-ए-चमन क्या ख़ूब

इज़ार-बंद के लच्छे का वाह रे आलम
गुदाज़ रानों पे पाजामे की शिकन क्या ख़ूब

जो पहना अच्छा बुरा तू ने उतरा बन बन कर
हर एक चीज़ में जानी सजीला-पन क्या ख़ूब

गुलाब से तिरे गाल और आँखें नर्गिस से
ब-रंग-ए-ग़ुन्चा-ए-लाला लब-ओ-दहन क्या ख़ूब

नज़र फिसलते ही वल्लाह मेरी आँखों में ख़ाक
कि साफ़ साफ़ है आईने सा बदन क्या ख़ूब

ख़ुदा ने नूर के साँचे में तुझ को ढाला है
जो देखता है वो कहता है ये सुख़न क्या ख़ूब

बयान हुस्न करे तेरा 'बहर' किस मुँह से
तिरा बनाव तिरे छब तिरी फबन क्या ख़ूब