जब वो मसरूर नज़र आता है
हर तरफ़ नूर नज़र आता है
मैं तो मय-ख़्वार हूँ तू क्यूँ साक़ी
नश्शे में चूर नज़र आता है
क़ुर्ब से हाथ उठाया मैं ने
तू बड़ी दूर नज़र आता है
मैं ही तन्हा नहीं दिल के हाथों
तू भी मजबूर नज़र आता है
ख़ाकसारी को छुपाने के लिए
'वज्द' मग़रूर नज़र आता है
ग़ज़ल
जब वो मसरूर नज़र आता है
सिकंदर अली वज्द